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कविता
Home›साहित्य›कविता›पढ़ते रहो पाठ प्रेम का

पढ़ते रहो पाठ प्रेम का

By नरेंद्र श्रीवास्तव
December 3, 2022
204
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पढ़ते रहो पाठ प्रेम का

दो मिला तो तीन को छोड़ा,तीन मिला तो दो को।
छोड़ा-छोड़ी क्यों करते हो?गलत है इसको रोको।।

चार मिला तो तीन को छोड़ा,पांच मिला तो चार।
सबसे प्रेम से मिलना सीखो,नफ़रत छोड़ो यार।।

छह मिला तो पांच को छोड़ा,सात मिला तो छह को।
सबको गले लगाओ हँस के,गुस्सा दिल से फेंको।।

आठ मिला तो सात को छोड़ा,नौ मिला तो आठ।
दिल की दिल से रखो करीबी,दूरियों को पाट।।

दस मिला तो नौ को छोड़ा,ग्यारह मिला तो दस।
पढ़ते रहो पाठ प्रेम का,जब तक चलता वश।।
***

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