बाल साहित्य व लोरी गीत की सशक्त हस्ताक्षर शकुन्तला सिरोठिया जी

“ श्रीमती शकुन्तला सिरोठिया १९३३-३४ में मेरी प्रिय छात्रा रही है | तब भी वे कवितायेँ लिखती थी और अब तो वह सक्षम कवियत्री हैं | साथ ही उनकी लेखनी बाल-मन की भावनाओं को शब्द चित्रों में आंकती रहती है | बालक का मन पाए बिना कोई व्यक्ति बालक के भावों को , कल्पनाओं को , शब्दों में नहीं उतार पाता और उस मन को पाने वाले के साथ वृक्ष बोलते हैं , फूल हँसते हैं , पशु–पक्षी कथा कहते हैं , मेरा आशीर्वाद है कि वह मन बालक ही रहे और निरंतर बालक के भाव चित्र अंकित करती रहे |” ये शब्द हैं छायावाद की महान कवियत्री महादेवी वर्मा जी के जो उन्होंने अपनी प्रिय छात्रा श्रीमती शकुन्तला सिरोठिया जी के प्रति एक समारोह में कही थी |
वे सिरोठिया जी जिनका राजस्थान , मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश व् छत्तीसगढ़ से सीधा सम्बन्ध रहा है और जिन्हें हिंदी बाल साहित्य के क्षेत्र में कहानी , कविता , नाटक आदि के साथ लोरी गीत हेतु बाल साहित्य आकाश में एक उच्च स्थान प्राप्त है | समीक्षक उन्हें लोरी सम्राट कहते हैं | जिन सिरोठिया जी प्रति छायावाद के दितीय महत्वपूर्ण साहित्यकार सुमित्रानंदन पन्त जी कहते हैं कि सुश्री शकुन्तला सिरोठिया के गीत , मर्म – मधुर भावनाओं की झंकारों से ओत-प्रोत हैं |
इन गीतों में सरल सात्विक व्यक्तित्व के जीवन संघर्ष की अभिव्यक्ति है | भाषा में एक गूढ़ अनिर्वचनीय सुख – दुःख भरा आकर्षण है | जिनके लिए प्रसिद्ध नाटककार व साहित्यकार डा राम कुमार वर्मा जी कहते हैं कि श्रीमती सिरोठिया की काव्यश्री से हिंदी साहित्य गौरवान्वित हुआ है |इन्होंने बाल साहित्य के मुरझाए अंकुर को सींच कर पुन: पल्लवित और कुसमित किया है |ऐसी साहित्य मनीषी सिरोठिया जी का यह जन्म शताब्दी वर्ष २०१५ में मनाई गयी |
यदि जीवन परिचय के प्रति थोड़ी सी बात की जाय तो श्रीमती शकुन्तला सिरोठिया जी का जन्म १५ दिसम्वर १९१५ को राजस्थान के कोटा जिला में हुआ | आपकी माता श्रीमती सुजानी शर्मा और पिता जी डा भँवर लाल शर्मा जी हैं जो पहले राजस्थान राज्य में सेवा रत थे बाद में उत्तर प्रदेश सरकार की सेवा में आ गये थे | ये एक कुशल चिकित्सक थे | अत्यंत उदार और आधुनिक विचारों के धनी डा शर्मा जी बौद्ध धर्म के ज्ञाता , चिंतक तथा साहित्यकार भी थे , जिसका सीधा प्रभाव सिरोठिया जी पर पड़ा |
किन्तु बाल साहित्य की लेखिका सिरोठिया जी को माँ का प्यार अधिक दिनों तक न मिल सका था | मात्र दो वर्ष की अवस्था में ही आपकी माता जी का स्वर्गवास हो गया | पिता परिवार में दादी या चाची के न होने से सिरोठिया जी का शैशव काल ननिहाल में बीता | इस बीच इनके पिता जी ने दो शादियाँ की किन्तु दस वर्षों के अन्तराल में दोनों का ही स्वर्गवास हो गया | निश्चय ही सिरोठिया जी को माँ का सार्थक प्यार दुलार न प्राप्त हो सका |
बचपन से ही आपका साहित्य व प्रकृति के प्रति विशेष आकर्षण था | इसलिए मनोरम प्रकृति ने आपके हृदय को मधुर व् कोमल भावनाओं से ओतप्रोत कर दिया | १४ वर्ष की अवस्था तक का समय विंध्याचल , मिर्जापुर , लालगंज तथा चुनार जैसे रमणीय स्थलों में बीता | इसी अवस्था में आपने हिंदी के प्राचीन व् आधुनिक साहित्यकारों की रचनाओं का अध्ययन किया | परिणाम स्वरूप साहित्य में रूचि जागृत हुई , १९२९ में आपकी एक बाल कविता “शिशु” बाल साहित्य पत्रिका में प्रकाशित हुई | अध्ययन एवं लेखन के प्रति आकर्षण को देखते हुए पिता डा शर्मा जी ने आपको आगे की शिक्षा ग्रहण करने हेतु प्रयाग भेज दिया |
प्रयाग में सिरोठिया जी का परिचय सुप्रसिद्ध कवियत्री महादेवी वर्मा जी व् तत्कालीन अन्य साहित्यकारों से हुआ | १९३५ में मध्य प्रदेश के दमोह के मूल निवासी श्री भुवन भूषन सिरोठिया जी से विवाह हुआ और वे शकुन्तला शर्मा से शकुन्तला सिरोठिया हो गईं | आपके पति मध्य प्रदेश में प्रथम श्रेणी के न्यायाधीश थे | आपके श्वसुर श्री भगवान दत्त सिरोठिया को साहित्य रंजन की उपाधि मिली थी | तत्कालीन वरिष्ठ साहित्यकारों में सर्वश्री कामता प्रसाद गुरु , माखनलाल चतुर्वर्दी , राय बहादुर साहब , जगन्नाथ प्रसाद भानु , पदुम लाल पन्नालाल बक्शी आदि उनके मित्रों से थे | श्रीमती सिरोठिया ऐसे साहित्यिक परिवेश परिवार की बहू बन कर आईं , बाद में उन्होंने अपना स्थायी निवास प्रयाग में बनाया और शिक्षा विभाग में अध्यापन कार्य के साथ-साथ लेखन में भी सक्रिय रहीं |
प्रारम्भ से आपकी रुचि बाल साहित्य के क्षेत्र में अधिक रही परिणाम स्वरूप बाल साहित्य में आपने महत्वपूर्ण कार्य करते हुए बाल कहानियां , कवितायेँ , नाटक आदि की रचना की और जिसमें कहानियां शेरू की बीरता , नीना की भेंट , बालक नेपोलियन की डायरी , चिड़ियों की सौगात ,बेला चली घूमने ,टिक्कू ने चलना सीखा , छोटा मुसाफिर लम्बा सफ़र , भयानक घाटी और शेर आदि के नाम से कहानी संग्रह का रूप लेती चलीं गईं |
बाल गीत और उसमें भी शिशुओं का प्रिय गीत जिसे वे माँ के द्वारा सुनते – सुनते निद्रा के आगोश में चले जाते हैं अर्थात लोरी गीत रचना हेतु तो श्रीमती सिरोठिया जी को सदैव स्मरण किया जाएगा | आरी निदिया के तहत आपने कई मधुर लोरियों की रचना की है , शिशुओँ हेतु लोरी रचना में तो उन्हें विशेष महारत हासिल थी | इसी के साथ – साथ आपने “शिशु नगर” नामक नाटक भी लिखा | इन सभी रचनाओं को हिंदी प्रचारक पब्लिकेशन ने बाल संसार समग्र के रूप में प्रकाशित किया है | जिसमें से कई कहानी व् कविता संग्रह पूर्व में प्रकाशित भी हो चुके थे | “आरी निंदिया” व् ‘सोओ सुख निदिया” के तहत उन्होंने शिशुओं हेतु ढेर सारी लोरिओं की रचना की है जैसे–
सो जा गुड़िया रानी , तेरी कल कर दूंगी शादी |
मधुर-मधुर मेरे द्वारे पर बजेगी खूब शहनाई |
तुझे विदा करके रानी , आएगी मुझे रुलाई |
तू मत रोना लेकिन गुड्डे के संग जाना |
चंदा सा दूल्हा पाकर गुड़िया , दुल्हन का कम निभाना |
या फिर — —
आ जा निदिया ,
चाँद की विंदिया , सो जा प्यारे लाल |
आँख बंद कर सो जा मुन्ना , तुझे सुनाऊँ लोरी |
चाँद लोक से परियां उतरी कुछ काली कुछ गोरी |
अन्य बाल साहित्य के तहत उनकी कविता “खेतिहर” लोगों में श्रमिक के प्रति एक अलग तरह के सम्मान की भावना उत्पन्न करती है –
ये जीने के अभ्यासी हैं इन पर हंसो न भैया ,
नील गगन की चादर इनकी धरती इनकी मैया |
नहीं चाहते राजमहल ये सुख की सेज न जाने ,
नहीं माँगते षटरस भोजन सुख से ये अनजाने |
दो सूखी रोटी हाथों पर नमक कुटुक कर खाते ,
चुल्लू से पानी पीकर ही मन में बहुत अघाते |
प्यार इन्हें मीठे बोलों से मीठा नहीं रुपैया ,
ये खेतिहर मजदूर हमारे इन पर हंसो न भैया |
भाई बहन के पवित्र पर्व रक्षाबंधन पर वे लिखतीं हैं कि — –
राखी भेज रही हूँ तुमको ,
सावन की पूनों को आज |
जनम – जनम तक रखना भैया ,
मेरी इस राखी की लाज |
इसी प्रकार देश की रक्षा हेतु वे कहतीं हैं –
आज सजग हो पहरा देना ओ भारत के प्रहरी |
गाते – गाते रात बिताना , नींद न सोना गहरी |
राष्ट्र दुर्ग में भेदभाव का , चोर न घुसने पाये |
लहराते झंडे को दुश्मन की न नजर लग जाये |
अब न द्वार पर कोई द्रोही घात लगाये गहरी |
आज चेत कर पहरा देना ओ भारत के प्रहरी |
किसानों को अगाह करतीं श्रीमती सिरोठिया जी लिखतीं हैं कि — —
घिर-घिर आये बदरा भैया , चलो खेत की ओर |
कल खेती में होगा सोना , बीज आज ही होगा बोना |
डरो न आंधी पानी में भी , नीद न गहरी सोना होगा |
तब मोती की फसल कटेगी , आज लगा लो ज़ोर |
भैया चलो खेत की ओर , जब फिर होगी भोर |
सिरोठिया जी ने मात्र बाल साहित्य ही नहीं बल्कि वयस्कों के लिए भी रचना की जिसमें उनके काव्य संग्रह सुधि के स्वर , अंश-अंश अभिव्यक्ति, चाँद इतना हंसा , मेरे परदेशी आदि प्रमुख हैं | लगभग ७० वर्ष की आयु में सिरोठिया जी ने बाल साहित्य में संलग्न रचनाकारों को सम्मानित व उनकी कृतियों को पुरस्कृत करने की योजना बनाई |
मै उन दिनों इलाहाबाद में ही माननीया सिरोठिया जी के घर के निकट मुहल्ला बाई का बाग़ में ही अपने मित्र डा भगवान प्रसाद उपाध्याय जी के साथ रहता था | उपाध्याय जी पत्रकारिता करते थे और मैंने आई इ आर टी इलाहाबाद से यांत्रिक इंजीनियरिग की पढाई करके वहीं नैनी में १९८४ से एक फैक्ट्री में नौकरी करना शुरू किया था | साहित्यिक अभिरुचि के कारण ही हम दोनों एक साथ एक कमरे में रहते थे | वहीं से मेरा माननीया सिरोठिया जी के यहाँ आना जाना शुरू हुआ | उपाध्याय जी का सिरोठिया जी से पहले से ही परिचय था |
इसी बीच १९८४ में ही साहित्यकारों को पुरस्कार देने की योजना भी बनीं | ‘शकुन्तला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार’ से साहित्यकारों को सम्मानित किया जाने लगा | आयोजन को सफलता पूर्वक पूर्ण करने में हम सब सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में होते थे | जिसमें जनपद के और भी युवा साहित्यकार शामिल थे | १९८९ में डा राम कुमार वर्मा जी के नाम से ‘बाल नाटक पुरस्कार’ तथा १९९३ में ‘भवानी प्रसाद गुप्त – बाल कहानी पुरस्कार’ तथा इसी के साथ १९८६ से अभिषेक श्री के अंतर्गत प्रयाग (इलाहाबाद ) के यशस्वी एवं वयोवृद्ध साहित्यकारों को सम्मानित किया जाने लगा |
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बाल साहित्य पुरस्कार और सम्मान योजना को वे बिना सरकारी या गैरसरकारी अनुदान के शानदार ढंग से आयोजित करती थीं | इस प्रकार के विभिन्न पुरस्कार से जिन यशस्वी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया या फिर उनकी कृतियों पर उन्हें पुरस्कृत किया गया | उसमें प्रमुख रूप से थे – डा रोहिताश्व अस्थाना , श्रीमती शकुन्तला वर्मा , राधेश्याम उपाध्याय , गोविन्द शर्मा , शिव कुमार गोयल , बाल शौर्य रेड्डी , डा शोभ नाथ लाल , नरेश चन्द्र सक्सेना “सैनिक” , राम बचन आनन्द , राम चन्द्र मिश्र , श्रीमती सरोजिनी अग्रवाल , साविर हुसेन , नारायण लाल परमार , भगवती प्रसाद दिव्वेदी ,पृथ्वी नाथ पाण्डेय , घमंडी लाल अग्रवाल, विष्णु कान्त पाण्डेय , जगदीश चन्द्र शर्मा , राम निवास मानव , वसु मालवीय , कलीम आनन्द , शम्भु प्रसाद श्रीवास्तव , हरि कृष्ण तैलंग , प्रेम नारायण गौड़ , योगेन्द्र कुमार लल्ला , डा हरीश निगम , डा भैरू लाल गर्ग, डा राजेन्द्र मिश्र , डा चन्द्रिका दत्त शर्मा , ठाकुर श्रीनाथ सिंह , जगपति चतुर्वेदी , सरदार बलवंत सिह , राम बहोरी शुक्ल , डा जगदीश गुप्त , विष्णु कान्त मालवीय , हेरम्ब मिश्र , डा राष्ट्र बन्धु , मानवती आर्या , युक्ति भद्र दीक्षित ,डा मोहन अवस्थी , श्याम मोहन त्रिवेदी , डा सुरेन्द्र विक्रम , चक्रधर नलिन आदि के साथ बहुत से साहित्यकारों की एक लम्बी फेहरिस्त है |
हांलाकि पुरस्कार को लेकर सिरोठिया जी का कहना था कि किसी विद्वान और साहित्यिक – विभूति कामूल्यांकन पुरस्कार राशि से नहीं किया जा सकता | पुरस्कार तो मात्र श्रद्धा सुमन है | स्नेह का तिलक है |हमारी अभिषेक श्री संस्था अपने सम्मानित साहित्य मनीषियों को हृदय की गहराई से अपनी श्रद्धा समर्पित करती है | किन्तु जब किसी नये पुरस्कार की घोषणा अभिषेक श्री संस्था के तहत होती तो सिरोठिया जी कहती हैं “जब किसी पौधे के वृंत पर नवीन कोंपले प्रस्फुटित होती हैं और जब नव-वधू सी सकुचाती , शरमाती अपने पल्लवी आवरण को पीछे सरकाती कलिका मुस्करा कर झांकती है तब माली का मन प्रसन्नता से गुनगुनाने लगता है | हमारी संस्था को भी जब किसी का स्नेह और विश्वास मिलता है और जब उसमें किसी नवीन पुरस्कार का प्रवेश होता है तब हमारे मन में भी अपार सुख की अनुभूति होती है |
गत वर्ष “भवानी प्रसाद बाल कहानी पुरस्कार” तथा इस वर्ष सम्मलेन बाल भारती पुरस्कार के प्रवेश से हमारे पुरस्कार परिवार में वृद्धि हुई है इससे हमारा मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ा है |” ये बात १९९३ की है | संस्था ‘अभिषेक श्री’ नामक एक त्रैमासिक पत्रिका भी नियमित प्रकाशित करती थी जिसमें संस्था की तमाम गतिविधियों की रपट के साथ विभिन्न स्तरीय रचनाकारों के आलेख व कवितायेँ भी शामिल होतीं थीं | साप्ताहिक हिन्दुस्तान के पूर्व सम्पादक शरदेन्दु जी ने सिरोठिया जी को एक पत्र में लिखा था कि आपने बच्चों को मीठी-मीठी लोरियां दी हैं | बाल साहित्यकारों को पुरस्कृत तथा वयोवृद्ध विद्वानों को सम्मान प्रदान कर श्रीमती शकुन्तला सिरोठिया दूसरों के लिए प्रेरणा बन गईं हैं | वस्तुत: शकुन्तला जी एक व्यक्ति नहीं एक संस्था बन गईं हैं |
इसी प्रकार देश के बहुत से साहित्यकारों के पत्र उनकी रचनाओं या कार्यों के प्रति आते रहते थे जिसमें श्री वियोगी हरि , विष्णु प्रभाकर , लक्ष्मी नारायण मिश्र , शिव शंकर मिश्र , संत राम बी ए , पद्मश्री चिरंजीत , डा रामेश्वर शुक्ल अंचल , निरंकार देव सेवक , डा विश्वनाथ याज्ञिक , श्याम मोहन त्रिवेदी, चक्रधर नलिन , डा विवेकी राय ,डा संत कुमार , डा ब्रज भूषण सिंह आदर्श , राम निरंजन शर्मा ,शम्भु प्रसाद श्रीवास्तव ,नर्मदेश्वर चतुर्वेदी आदि प्रमुख हैं | साहित्य सेवा हेतु सिरोठिया जी को पंजाब कला अकादमी , उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान , हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग ,बाल कल्याण संस्थान , विक्रमशिला विद्यापीठ आदि स्थापित संस्थानों ने सम्मानित किया | निश्चय ही बाल साहित्य के क्षेत्र में श्रीमती शकुन्तला सिरोठिया जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया है जिसके कारण वे मात्र इलाहाबाद ही नहीं भारत के कई प्रान्तों में अपनी पहचान छोड़ गईं हैं |
सिरोठिया जी का स्वर्गवास इलाहाबाद में ५ जून २००५ में हुआ था | श्रीमती शकुन्तला सिरोठिया जी द्वारा हम सबको जो स्नेह प्राप्त हुआ है उसे हम आज भी संजोये हुए हैं | हाँ थोडा सा दुःख अवश्य होता है कि उनका जन्म शताब्दी वर्ष निकल गया और इलाहाबाद जैसे साहित्यिक गढ़ में सिरोठिया जी के केंद्र में न कोई विशेष कार्यक्रम हुआ न ही किसी ने अब तक कोई विशेषांक प्रकाशित किया | परिवार के सदस्यों में भी किसी को साहित्य लेखन के प्रति कोई रूचि नहीं है | हाँ राजस्थान से बाल वाटिका पत्रिका के सम्पादक डा भैरू लाल गर्ग जी से मेरी बात हुई जिसके तहत वे विशेषांक निकालने को तैयार हो गये और सिरोठिया जी पर एक बहुत अच्छे विशेषांक के रूप में वह अंक आया |
आज श्रीमती शकुन्तला सिरोठिया जी सशरीर अवश्य ही अब इस धरा पर नहीं हैं लेकिन अब भी जब बाई का बाग़ इलाहबाद में उनके छोटे पुत्र श्री नरेंद्र नाथ सिरोठिया जी मिलने उनके आवास पर जाता हूँ तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे अभी माननीया शकुन्तला सिरोठिया जी अचानक प्रकट हो जाएँगी और हाल-चाल पूछने लगेंगी | सन्दर्भ –१ बाल संसार समग्र ( प्रथम भाग)- शकुन्तला सिरोठिया २ अभिषेक श्री पत्रिका के पुराने अंक जो मेरे पास आज भी सुरक्षित हैं|