बेटी बचावा, बेटी पढ़ावा
नोनी बाबू एक हे, झिन कर संगी भेद !
रुढ़ीवादी बिचार ला, लउहा तैहा खेद !!
लउहा तैहा खेद, समाज म सुधार आही!
पढ़ही बेटी एक, दुई घर सिक्छा लाही !!
मान मिलनके गोठ, भ्रुणहत्या कर काबू !
भेज दुनो ल एकसंग, इसकुल नोनी बाबू!!
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पुस्तक डरेस लानदे, बिसादे अउ सिलेट !
बरतन चउका झिनकरा, पढ़ाई ल झिन मेट !!
पढ़ाई ल झिन मेट, सिक्छा के अधिकार दे!
बेटी बने पढ़ाव, अउ चरित सन्सकार दे !!
आही सिक्छा काम, दुख-दरद देही दस्तक !
मनुस छोड़थे संग, फेर नइछोड़य पुस्तक !!
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बेटी पढ़के बाँटही, गांव गांव म गियान !
परकेधन झिन मान रे, इही देस के जान !!
इही देस के जान, पढ़लिख नवाजुग लाही !
रुकही अतियाचार, कुकरमी दूर हटाही !!
मलरिहा कहत रोज, पुस्तक धरादे बेटी !
अबतो जाग समाज, सिक्छित बनादे बेटी !!
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कहाँले बहूँ लानबो, परगे हवय अकाल ।
बेटा बेटा सब गुनय, इही जगत के हाल ।।
इही जगत के हाल, कोख भितरी मरवाथे ।
गुनले अपन बिचार, बेटी रोटी खवाथे ।।
कहत मलरिहा गोठ , मति मा तोरे बसाले ।
छोड़ देहि सनसार, दाई पाबे कहाँले ।।
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नोनी बहनी नोहय ग, ए जिनगी के बोझ ।
टूरा होथे मनचला, कोनो रहिथे सोझ ।।
कोनो रहिथे सोझ, दाई – ददा ल सताथे ।
काम बुता ढेचराय , मुड़ी धरके रोवाथे ।।
मलरिहा कहत गोठ, कानले निकाल पोनी ।
कब समझबे मनूस, भविस्य हमर हे नोनी ।।