Author: आदित्य प्रकाश दूबे 'पथिक'
क्या लिखूं,कैसे लिखूं ?
हो गया हूं फिर अपरिचित , क्या लिखूं,कैसे लिखूं , रत्नगर्भा ,रक्तरंजित ! क्या लिखूं ,कैसे लिखूं ? सी रही है हवा फिर से ...जीत लें हम, जंग हारी
जीत लें हम ,जंग हारी, यह , हमारी कामना है , वह,सुबह होने को आई, पर अभी कोहरा घना है।। दिल , बहुत हैरान ...मन की बात कोई ना समझे
मन की बात कोई ना समझे , मन फिर चला अकेला । तरुणाई फिर से है मुखरित, कैसा अद्भुत मेला ।। झंकृत है यौवन ...अब तो हर शख्स को
अब तो हर शख्स को , चिराग जलाना होगा । अपने अल्फाज में उम्मीदों को सजाना होगा ।। रफ्तार बहुत तेज है बढ़ते हुए ...हार गया मन,जीते-जीते
हार गया मन,जीते-जीते, फटी जिंदगी ,सीते-सीते, अपने ,अंधियारे बीते हैं , मन की मदिरा पीते-पीते। धूप – छांव के ऊपर -नीचे, कैसा यह कोहराम ...आक्रोश का मंथन हुआ है
देखता हूँ आज फिर , आक्रोश का मंथन हुआ है । शहर, गाँव, गली-गली, जिसका अभिनंदन हुआ है।। फिर कहूँगा आँच ये, पिघलेगी या ...