Author: जयंत पटेल
दिन थका हारा गया रात मचल के आयी
दिन थका हारा गया रात मचल के आयी नींद तब जा के इन आँखों में सँभल के आयी उसकी आवाज़ में वो बात नहीं ...आसमाँ पानी हवा आग और ज़मीं है
आसमाँ पानी हवा आग और ज़मीं है एक मुश्त-ए-ख़ाक में क्या-क्या नहीं है एक बुत पर कुल-जमा इतना यक़ीं है “वह ख़ुदा है ठीक ...मुख़ालिफ़त के अँधेरे से लौट आ वापस
मुख़ालिफ़त के अँधेरे से लौट आ वापस निज़ाम के बुने घेरे से लौट आ वापस जदीद राहों पे चलने का वक़्त आ गया अब ...वे मिट गए और मिट गया शमशीर का लिक्खा
वे मिट गए और मिट गया शमशीर का लिक्खा लेकिन अभी तक चल रहा है ‘मीर’ का लिक्खा ऊपर से ख़ुदा उतरा न उतरी ...ज़ख़्म हैं उस पे ज़ख़्म के ये मंज़र
ज़ख़्म हैं उस पे ज़ख़्म के ये मंज़र अब के तोहमत लगाएँ हम किस पर हँसना मजबूरी थी दीवारों की रोते रहते तो डूब ...हटना है या कि बाज़ी लगानी है जान की
हटना है या कि बाज़ी लगानी है जान की है सामने तुम्हारे घड़ी इम्तिहान की क़ीमत नहीं घटी सर-ए- बाज़ार धान की हाक़िम ने ...