Author: डॉ. प्रीति प्रवीण खरे
हमें सिखा देंगे
सूखी नदी शुष्क हवा पीले पत्ते मुरझाईं कोंपलें खिल उठीं और गाते झरने बहती नदी महकते फ़ूल हृदय में उतरकर तरंगों उमंगों से चुराते ...जीवन की अंतरवीणा
मन की अंतरवीणा कोलाहल को भेद उमंग तरंग के छंदों से कुछ कहती कुछ गाती प्रतिबिंबित करती मधुर रागों को तेरा सूनापन भी मैं ...