कविता
आओ कुछ पेड़ लगायें
छोड़ो सब बेकार की बातें,आओ अब कुछ पेड़ लगायें। छाया होगी,फूल खिलेंगें,फल आयेंगे सब मिल खायें।। अपनी सीमा उतनी ही है,दूजे की हो शुरू ...पढ़ते रहो पाठ प्रेम का
दो मिला तो तीन को छोड़ा,तीन मिला तो दो को। छोड़ा-छोड़ी क्यों करते हो?गलत है इसको रोको।। चार मिला तो तीन को छोड़ा,पांच मिला ...आओ हाथ बढ़ाये
ऊँच-नीच, जाति-धर्म, भेदभाव को पाटें । दिल दुनिया का जीतें, प्यार, मुहब्बत बाटें।। भाई-चारा, चैन-अमन, और हो खुशी की बातें। न राह में हो ...बेटी बचावा, बेटी पढ़ावा
नोनी बाबू एक हे, झिन कर संगी भेद ! रुढ़ीवादी बिचार ला, लउहा तैहा खेद !! लउहा तैहा खेद, समाज म सुधार आही! पढ़ही ...क्या लिखूं,कैसे लिखूं ?
हो गया हूं फिर अपरिचित , क्या लिखूं,कैसे लिखूं , रत्नगर्भा ,रक्तरंजित ! क्या लिखूं ,कैसे लिखूं ? सी रही है हवा फिर से ...जीत लें हम, जंग हारी
जीत लें हम ,जंग हारी, यह , हमारी कामना है , वह,सुबह होने को आई, पर अभी कोहरा घना है।। दिल , बहुत हैरान ...मन की बात कोई ना समझे
मन की बात कोई ना समझे , मन फिर चला अकेला । तरुणाई फिर से है मुखरित, कैसा अद्भुत मेला ।। झंकृत है यौवन ...अब तो हर शख्स को
अब तो हर शख्स को , चिराग जलाना होगा । अपने अल्फाज में उम्मीदों को सजाना होगा ।। रफ्तार बहुत तेज है बढ़ते हुए ...हार गया मन,जीते-जीते
हार गया मन,जीते-जीते, फटी जिंदगी ,सीते-सीते, अपने ,अंधियारे बीते हैं , मन की मदिरा पीते-पीते। धूप – छांव के ऊपर -नीचे, कैसा यह कोहराम ...