कविता
पिंडदान और गाँव का घर
गाँव का घर अब नहीं रहा हो गया है खंडहर किन्तु जाने क्यों इधर आये दिन सपने में आता है गाँव का घर एकदम ...गाँव बड़ा है प्यारा
गाँव बड़ा है प्यारा, बीता बचपन हमारा। खेले है उस आँगन, तालों का घाट पावन। पुरवाई गीत सुनाए, भौरें है गुनगुनाये। पंछी है चहचहाये, ...बासन्ती पवन
हौले, हौले रे घुमड़ बासन्ती पवन, लेकर अहसासों का मीठा छुअन। मस्ती भरी अंगड़ाई, कलियां भी देख देख मुस्काई। झूम उठे भौरें ऊंचे गगन।। ...बरसों बदरा
आओ बदरा घिर आओ, नैन तके हो आकुल। घटा बनके उतर आओं चित्त हैं व्याकुल।। सांझ,सँवरें नित तुम्हरें राह तके विकल मनवा। अब की ...कल्पनाओं के
कल्पनाओं के अनगिनत डगर पर, साक्षी बन फिरते रहेंगे बन हमसफ़र। भूत और प्रारब्ध में मिलते रहेंगे यूँही करते अदाकारी बन सपनों का सौदागर ...दूजा न कबीरा
पुण्य सरोवर में, हर उपवन में, आकाशी इस आँगन में । लिए पसार प्रीत, अनुबंध गीत, क्षणिक क्षुब्ध सी वेदना में। पुलक भये शरीर,ना ...हाइकु विन्यास में गज़ल
कभी बेकार/ की बातों को/ छोड़ देवें भी, टूटते रिश्तों/को आपस में कभी/जोड़ देवें भी| बड़ी जालिम/ दुनिया की रिवाजें/जिसमें बंधे, ऐसे वैसे को/ ...अंतर्व्यथा
व्यथित मन के घेराव से, न कहीं पर ठाँव, थमते क्यों नहीं हमारे, दोनों हाथ पाँव। आशा रूपी बाणों से, ले ...